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ca. Ratan Kumar Agarwala

Abstract Others

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ca. Ratan Kumar Agarwala

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आज मन से दिल का हो गया झगड़ा

आज मन से दिल का हो गया झगड़ा

2 mins
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मन और दिल में झगड़े होते ही रहते,  किसी बात पर एक न होते,

मन सोचता बुद्धि से सदा, दिल में भावों के ज्वार उठते रहते।

मन और दिल की इस लड़ाई में, चलती रहती भावनाओं और बुद्धि की जद्दोजहद,

कभी मन मायूस हो जाता, कभी दिल कुन्द हो जाता, जिन्दगी होती हद से बेहद।

 

दिल होता शरीर का एक अंग, मन होता आत्मा के संग अति अंतरंग,

दिल तो बँध जाता बाहरी मोह पाश में, मन रहता सदा इन बाहरी भावनाओं से बेरंग।

दिल और मन का चला आ रहा द्वन्द्व, युगों युगान्तरों से, हरदम से,

दिल तो भटक जाता कभी कभार भावनाओं में, मन चलता संभल कर कदम कदम पे।

 

जब बोलना होता, बोल देता, दिल कोमल बोल, मन की कथा कुछ अलग अलग,

मन बोलता बहुत कुछ सोच कर अंतर्मन से, मन और दिल होते कुछ विलग विलग।

हो जब भी परिवार की बातें, या हो रिश्तों की कवायद, दिल देता तब सच्चे बोल,

मन नहीं बहकता इन बातों में, रिश्तों नातों में, बुद्धि के संग देता सब खोल।

 

दिल और मन के इस असमंजस में, दो भागों में बँट जाती जिन्दगी,

दिल और मन के झगड़ों में न बिखरे जिन्दगी, करता दिमाग सदा यही बंदगी।

दिल कहता “बच्चा है, राह बना दो आसान”, मन कहता है, “रुको, करना है भविष्य निर्माण”,

भावों में बहकर दिल कर देता गड़बड़ कई बार, मन ही दे सकता है सफलता का सही सोपान।

 

आओ निकलें बाहर, मन और दिल के बीच चले आ रहे मनमुटाव से,

बनाये मन और दिल का एक संतुलन, दूर हो दोनों आपसी दुराव से।

अगर दिल लेने लगे निर्णय सारे, करके अंतर्मन के भावों को खुद में समाहित,

तो नहीं होगी इन दोनों में लड़ाई कभी, नहीं साधेंगे कोई जिन्दगी का अहित।


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