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Monika Baheti

Abstract Tragedy Fantasy

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Monika Baheti

Abstract Tragedy Fantasy

आज मन नहीं है

आज मन नहीं है

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ओ नीला आसमान तेरा रंगीन है ये जहान...आज मन नहीं है तुम्हारे संग बैठने का... 

ओ मेरे चहिते तारो ओर सितारों....

आज मन नहीं है तुमसे बतियाने का... 

ओ नीलगगन के चन्द्रमा आज मन नहीं है तुम्हें निहारने का...

हवा की मन्द मन्द मुस्कुराहट... 

चेहरे पर वो सहलाते बाल.... 

हवा में उड़ते बाल जोर जोर से हंस हंस के कहते है....आज मन नहीं है ..

आज तुम होश में नहीं मदहोशी में हो... 

मदहोशी ना है ये शराब की... 

आज नशा है मुझे अमावस्या के काले ईद के चाँद का... 

आँखों में नींद है पर आज सोने का मन नहीं है....

अरे माफ़ करना मेरे करीबी दोस्त मेरे साँवरे

आज तुमसे फ़रियाद करने का मन नहीं है.... 

अरे माफ़ करना दिल के पागल दिमाग़

आज तुम्हारी गलतियों कि अदालत लगाने का मन नहीं है... 

अरे ओ बावरे मेरे पत्थर दिल आज तू बेचैन क्यूं है रे... 

अरे ओ बावरे मन आज तू क्यूं उदास बैठा है....

आज तेरी रावन वाली हंसी कहा गुम हो गयी... 

अरे प्यारी चादर तू क्यूं लिपटी है मुझसे

मेरी आँखों में आज आंसू नहीं है.... 

बस आज मन नहीं है.....


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