आज में इतिहास
आज में इतिहास
आज में इतिहास और इतिहास में आज है
यह फितरत का नहीं। सिर्फ समय का अंदाज है।
पल पल का हर पल जी रही है।
आंधी से भी बेखौफ निकल रही है।
जिंदगी अब रूह का अर्थ समझ रही है
मन का बोझ, बोझ नहीं कपास हो गया।
जब लबों ने खुलकर आगाज़ का अंजाम दिखा दिया
पिंजरे में नहीं रखा है लेकिन आजाद भी कहां किया है।
परों को काटकर चेहरे को मुस्कान से ढकने को कहा है।