आ भी जाओ कभी
आ भी जाओ कभी
प्यार की छोटी सी रवायत निभा जाओ कभी,
मर मरकर जी रहे हे शक्ल दिखा जाओ कभी।
मेरे तसव्वुर में तो विराजमान हो हरदम
तस्वीर से निकल कर मुख़ातिब हो जाओ कभी।
माना की तुम साहब इश्क के मौसम सही
नाचीज़ पर बहार बनकर बरस जाओ कभी।
दिल की तपिश का आलम ना पूछो हमसे
ज़लज़ले से तन्हाई के शोले बुझा जाओ कभी।
गुनगुनाता है गम यादों के नग्मों की लडी
अचानक आकर अरमाँ पूरे कर जाओ कभी।
नैनों की नमी से कोरा दामन है गीला
दिल की सीलन को भरने ही आ जाओ कभी।
इबादत में रोज़ उठे हाथ ख़ैरियत में तेरी
नाराज़गी का सबब बताने ही आ जाओ कभी।।