आ अब लौट चलें
आ अब लौट चलें
बचपन में चले थे जो साथी साथ-साथ
वह अल्हड़, अबोध और नादान थे
दुनिया के तौर-तरीकों से अंजान थे ।
जिस निश्छल भाव से जुड़े थे
आँधी-तूफानों से भले ही रास्ते मुड़े थे
पर वे जस-के-तस खड़े थे।
कॉलेज में आते-आते -
मासूमियता को परिपक्वता लगी बहलाने
अल्हड़ और अबोध कदम हो गए सयाने ।
कुछ वहीं बचपन के साथी, कुछ बने नए थे
जिंदगी की रेस में कुछ बनने की होड़ में सभी अस्त व्यस्त थे
सिर्फ भाग-दौड़ में व्यस्त थे ।
कुछ ऊँचे-ऊँचे ओहदों में हुए विराजमान
मगर उन्हें अब मिलने से गुरेज हैं
अपना साथी कहने में परहेज है।
दफ्तर के साथी बनते-बिगड़ते रहे
सभी तरक्की की जुगत में,
बॉस के करीब थे
सामने हबीब ,पीठ पीछे रकीब थे ।
मगर यह दिल हमेशा इन सब में
अपने बचपन के साथियों को ही से तलाशता रहा ।
कुछ साथी सदा के लिए अलविदा कह गए थे
कुछ अभी भी उन्हीं मासूम मुस्कराहटों
निश्छल -नि:स्वार्थ अाहटों के साथ
उन्हीं चौक-चौराहों पर
बड़ी गर्मजोशी से इंतजार में खड़े हैं
बहुत भाग लिए ,इस दुनिया की भीड़ में
आ अब लौट चलें बचपन की मासूम
मस्ती में।आ अब लौट चलें
बचपन में चले थे जो साथी साथ-साथ
वह अल्हड़, अबोध और नादान थे
दुनिया के तौर-तरीकों से अंजान थे ।
जिस निश्छल भाव से जुड़े थे
आँधी-तूफानों से भले ही रास्ते मुड़े थे
पर वे जस-के-तस खड़े थे।
कॉलेज में आते-आते -
मासूमियता को परिपक्वता लगी बहलाने
अल्हड़ और अबोध कदम हो गए सयाने ।
कुछ वहीं बचपन के साथी, कुछ बने नए थे
जिंदगी की रेस में कुछ बनने की होड़ में सभी अस्त व्यस्त थे
सिर्फ भाग-दौड़ में व्यस्त थे ।
कुछ ऊँचे-ऊँचे ओहदों में हुए विराजमान
मगर उन्हें अब मिलने से गुरेज हैं
अपना साथी कहने में परहेज है।
दफ्तर के साथी बनते-बिगड़ते रहे
सभी तरक्की की जुगत में,
बॉस के करीब थे
सामने हबीब ,पीठ पीछे रकीब थे ।
मगर यह दिल हमेशा इन सब में
अपने बचपन के साथियों को ही से तलाशता रहा ।
कुछ साथी सदा के लिए अलविदा कह गए थे
कुछ अभी भी उन्हीं मासूम मुस्कराहटों
निश्छल -नि:स्वार्थ अाहटों के साथ
उन्हीं चौक-चौराहों पर
बड़ी गर्मजोशी से इंतजार में खड़े हैं
बहुत भाग लिए ,इस दुनिया की भीड़ में
आ अब लौट चलें बचपन की मासूम
मस्ती में।