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Archana kochar Sugandha

Others

4  

Archana kochar Sugandha

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आ अब लौट चलें

आ अब लौट चलें

2 mins
358



बचपन में चले थे जो साथी साथ-साथ 

वह अल्हड़, अबोध और नादान थे

दुनिया के तौर-तरीकों से अंजान थे ।

जिस निश्छल भाव से जुड़े थे 

आँधी-तूफानों से भले ही रास्ते मुड़े थे 

पर वे जस-के-तस खड़े थे।


कॉलेज में आते-आते -

मासूमियता को परिपक्वता लगी बहलाने 

अल्हड़ और अबोध कदम हो गए सयाने ।

कुछ वहीं बचपन के साथी, कुछ बने नए थे 

जिंदगी की रेस में कुछ बनने की होड़ में सभी अस्त व्यस्त थे 

सिर्फ भाग-दौड़ में व्यस्त थे । 

कुछ ऊँचे-ऊँचे ओहदों में हुए विराजमान 

मगर उन्हें अब मिलने से गुरेज हैं 

अपना साथी कहने में परहेज है।


दफ्तर के साथी बनते-बिगड़ते रहे 

सभी तरक्की की जुगत में, 

बॉस के करीब थे 

सामने हबीब ,पीठ पीछे रकीब थे । 


मगर यह दिल हमेशा इन सब में 

अपने बचपन के साथियों को ही से तलाशता रहा ।

कुछ साथी सदा के लिए अलविदा कह गए थे 

कुछ अभी भी उन्हीं मासूम मुस्कराहटों

निश्छल -नि:स्वार्थ अाहटों के साथ

उन्हीं चौक-चौराहों पर 

बड़ी गर्मजोशी से इंतजार में खड़े हैं

बहुत भाग लिए ,इस दुनिया की भीड़ में 

आ अब लौट चलें बचपन की मासूम

मस्ती में।आ अब लौट चलें 


बचपन में चले थे जो साथी साथ-साथ 

वह अल्हड़, अबोध और नादान थे

दुनिया के तौर-तरीकों से अंजान थे ।

जिस निश्छल भाव से जुड़े थे 

आँधी-तूफानों से भले ही रास्ते मुड़े थे 

पर वे जस-के-तस खड़े थे।


कॉलेज में आते-आते -

मासूमियता को परिपक्वता लगी बहलाने 

अल्हड़ और अबोध कदम हो गए सयाने ।

कुछ वहीं बचपन के साथी, कुछ बने नए थे 

जिंदगी की रेस में कुछ बनने की होड़ में सभी अस्त व्यस्त थे 

सिर्फ भाग-दौड़ में व्यस्त थे । 

कुछ ऊँचे-ऊँचे ओहदों में हुए विराजमान 

मगर उन्हें अब मिलने से गुरेज हैं 

अपना साथी कहने में परहेज है।


दफ्तर के साथी बनते-बिगड़ते रहे 

सभी तरक्की की जुगत में, 

बॉस के करीब थे 

सामने हबीब ,पीठ पीछे रकीब थे । 


मगर यह दिल हमेशा इन सब में 

अपने बचपन के साथियों को ही से तलाशता रहा ।

कुछ साथी सदा के लिए अलविदा कह गए थे 

कुछ अभी भी उन्हीं मासूम मुस्कराहटों

निश्छल -नि:स्वार्थ अाहटों के साथ

उन्हीं चौक-चौराहों पर 

बड़ी गर्मजोशी से इंतजार में खड़े हैं

बहुत भाग लिए ,इस दुनिया की भीड़ में 

आ अब लौट चलें बचपन की मासूम

मस्ती में।



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