वो दर्द की रात थी... तेज बरसात थी... वो दर्द की रात थी... तेज बरसात थी...
ये समाज ओर रिवाज सब इक समान हैं पर सोच ओर संस्कार से सब बेईमान हैं।। ये समाज ओर रिवाज सब इक समान हैं पर सोच ओर संस्कार से सब बेईमान हैं।।
गूंजती है आज भी फिज़ा में हजारों सिसकियां, घुट घुट कर तड़पती है इस समाज में बेटियां! गूंजती है आज भी फिज़ा में हजारों सिसकियां, घुट घुट कर तड़पती है इस समाज में ...