56 की उम्र.....
56 की उम्र.....
बीत गए जीवन के 56 साल, हुए सफ़ेद कुछ कुछ बाल,
परिवार की जिम्मेदारियां निभाते निभाते, हुआ हाल बेहाल।
किसी ने न समझी मर्द की वेदना, सबने ठहराया उसे ही दोषी,
परिवार के लिये मर मिटने का जज्बा, दे न पाया उसे ख़ुशी।
शादी हो गयी अट्ठाईस की उम्र में, इकत्तीस में हो गए बच्चे,
आमदनी उतनी बढ़ा न पाया, पर घर में बढ़ गए सब खर्चे।
सबकी अपनी अपनी फरमाइशें, कोई न पढ़ पाया उसकी व्यथा,
पूरा करता रहा सबकी इच्छाएं, बस यही बन गयी उसके जीवन की कथा।
धूप हो, बारिश हो या हो भीषण सर्दी, काम करने को मजबूर,
पल भर का भी चैन न मिलता, बन कर रह गया मजदूर।
पैसे कमाने की बन गया मशीन, पूरी करनी है सबकी ख्वाहिशें,
कमा कमा कर उम्र गुजर गयी, यूं ही बीत जाएंगी साँसे।
अनुभवों का चोगा पहनाकर सबने, दे दी उसे अलग पहचान,
रह गया हाँड़ मांस का पुतला बनकर, किया खुद का दान।
गलता रहा, ढलता रहा, उम्र सारी यूं ही निकलती गयी,
लड़ता रहा सबकी खुशियों के लिये, खुद की खुशियाँ बिसरती गयी।
अपनी अपनी ढपली, अपना अपना राग, खो सा गया जीवन का फाग,
कभी जो पूरी न कर पाया किसी की ख्वाहिश, लग गया काबिलीयत पर दाग।
न दिन का पता, न रात का चैन, थका हारा बेचारा परेशान,
किसी ने न की उसकी परवाह, छोटी छोटी बात पर करते अपमान।
दिन भर करता पैसों के लिये जद्दोजहद, कि मिलेगा रात को घर में सुकून,
सुकून की जगह मिलती किचकिच, बढ़ जाती हृदय की धड़कन।
तैयार रहती सबकी फरमाइशें, अपनी अपनी ख्वाहिशों की फ़ेहरिस्त,
नहीं टपकने देता गिरते आँसुओं को, पर टूट सा जाता वह जबरदस्त।
बच्चों ने नहीं समझा कभी, अपने पिता के अंतर्मन का दर्द,
न समझ पाए पिता की व्यथा, न बन पाए पिता के हमदर्द।
नाम दे दिया फर्ज़ का सबने, पिता को बना दिया कठपुतली,
सुकून की जगह मिलती घर में सदा, शिकायतों की पोटली।
खाने में मिलती दो रोटियां, साथ में शिकायतों की कड़वी सब्जियां,
सब को निगल लेता एक साथ वह, यूँ उड़ जाती उसकी भावनाओं की धज्जियां।
दिन भर का थकाहारा जब सोता, आ जाती झट से नींद,
मन की बातें मन में रह जाती, रात भर होती हालत पलीद।
सुबह उठ कर फिर काम पर जाना है, बिजली का भरना है बिल,
बच्चों की स्कूल फीस है भरनी, ताकि बन जाए वह कुछ काबिल।
उन्हें भी तो लड़नी है एक दिन, ज़िन्दगी की यही लड़ाई,
तभी शायद पता चलेगी उन्हें, अपने पिता के दर्द की सच्चाई।
उम्र के इस दौर में, जवानी जाग रही है फिर एक बार,
बहुत कुछ बदल सा गया है, पर नहीं मानूँगा मई हार।
खुद को थोड़ा वक़्त देना है, बीते दिनों को फिर जीना है,
मैं और मेरी हमसफर, बस फिर अलग इतिहास रचाना है।
न बच्चों से गरमा गर्मी, न रिश्तों नातों से कोई भी बैर,
जीयेंगे हम दोनों एक दूजे संग, रखेंगे एक दूजे की खैर।
छोटा सा सजायेंगे आशियाना, किसी की न होगी टोका टाकी,
जीयेंगे कुछ वर्ष अपने लिए, अभी बहुत मस्तियाँ हैं बाकी।