कहानीकार
Drama
ये शक्ति है मुझमें किंतु सृष्टि चलती रहे और सभ्यताएँ फैलती रहें इसलिए मैं स्वयं ही डूबती हूँ और ...
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Drama Tragedy
मैं, माँ की चटाई बिछाकर माँ का चश्मा लगाती हूँ और माँ की किताबों में खोजती हूँ माँँ...!
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Drama
मैं भटक-भटककर तलाशती हूँ थोड़ी धूप थोड़ी छाँव थोड़ी जमीन खड़े रहने लिए जो माँ के जाने के बाद मुझे ...
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Drama
बड़ा तो आकाश है लेकिन आश्रय धरा ही देती है बड़ा तो सागर है लेकिन प्यास नदी ही बुझाती है !
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Drama
प्यास बुझाने के लिए तो दिल की निर्झरणी से बहती हुई प्रेम-धार की एक बूंद ही काफी है |
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Drama
सोचती हूँ खिड़की से ही सही पर क्या मैं देख पाऊँगी उस चिनार को अपनी अंतिम साँस के पहले एक बार !
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Drama
अब प्रेम के लुट जाने के बाद बचा ही क्या है हमारे घर में जो चाबियों को रखा जाये संभाल कर...!
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Drama
एक ओर हरा-भरा गाँव बजती हैं जानवरों के गले की घंटियाँ चरवाहों की हँसी के साथ दूसरी ओर रिसता है पीपल ...
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