पथिक हूं इस धरा पर, एक सार्थक यात्रा करनी है। न थकना है न रुकना है, हर हाल में आगे बढ़ना है। सत्य प्रकृति दृढ़ निश्चय से, प्रभु से क्षितिज पर जा मिलना है।
मैं ही ब्रह्म हूं, इस ब्रह्मांड का अभिन्न अंश हूं और मैं ब्रह्मांड को प्रेम करता हूं मैं ही ब्रह्म हूं, इस ब्रह्मांड का अभिन्न अंश हूं और मैं ब्रह्मांड को प्रेम करता...
" बड़ी मां" की तरह सावन की बारिश में जी भर भीगती है और नृत्य करती है। " बड़ी मां" की तरह सावन की बारिश में जी भर भीगती है और नृत्य करती है।
फिर मेहता साहब, बैग लेकर तट की और चल पड़े....। फिर मेहता साहब, बैग लेकर तट की और चल पड़े....।