जब जब सुकूँ की जरूरत पड़ी शहर से गाँव हुई है ज़िन्दगी #कुनु
मुझको पाने दो चार ग़जलें लगेंगी मिरे शख़्सियत ने क़लम हर्फ़ के सिवा जाना कुछ नही
सपनों में खोता हूं तुम्हारे हर पल पागल सा और कितने प्यासे रखोगी इन सूखे होठों को हिमाकत कर जाने दो भवरों को क्यूं हिजाब में कैद कर देती हो बहके अरमानों को