अनजान हम भी वहाँ पहुच गए
क्या है बुझने के पहले की छटपटाहट?? किसी के चढ़ाने से वो चढ़ा नही। समझता था अपनी कमजोरियों को। सीमाओं में बंध जीता चल। कहीं पहुचने की कोई तमन्ना नही।
उससे यूँ मुँह फिरा लेना, उसकी ओर बढ़ना था। दूरिया तो बनावटी मुस्कानों से स्थापित होती है।
दूर एक स्वर्णिम किरण को देख वो चल पड़ा। पलायन या आगे बढ़ने का छोटा कदम?