prashant goswami

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बेटियां मुस्कराहटोँ के पीछे छिपा लेतीँ अपने सारे गम कि मात पिता की आँखें हो जाएँ न कहीँ नम प्रशांत

ऐ नारी तू करती रहती काम सुबह से शाम कौन कहे दो पल कर ले तू विश्राम प्रशाँत

अवकात से वढकर जो दिखावे करता वो कर्ज मेँ जीता कर्ज मेँ ही मरता प्रशांत


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