हिन्दी पुस्तक लेखक।पर्यावरणविद।सामाजिक कार्यकर्ता।पब्लिक फिगर।आरटीआई कार्यकर्ता। सामाजिक राजनीतिकआर्थिकी विश्व घटनाओं पर रूचि कर लेखन कई साहित्यिक मंचों से जुड़े हैं।
Share with friendsज़िंदगी में सफ़लता पाना एक मकसद हों। जिंदगी में कुछ तमन्नाएं बाकी हो। किस्मत वाले सत प्रतिशत टारगेट पुर्ण करते हैं। कुछेक के सपने त़ो हमेशा अधूरे ही रहते हैं।
ज्ञान बढाने के लिए गूगल हैं। तो रास्ते चलाने को हैं पुलिस। पुलिस में राम नहीं पैसा भगवान। सामाजिक पंच पंचायती ढुब गई। न्यायिक व्यवस्था ढुबने का दुख। मुख में राम बगल में सुरी दोगले इंसान।।
जातिवाद विरोधी नारे लगाने वाले खुद जातिवाद करते हैं। कभीअंतरजातिय विवाह नहीं स्वीकारते हैं। अंतरजातिय छोड़ो। स्व जाति में भी स्व गोत्र देखते हैं। लेकिन फिर भी जातिवाद खत्म हो। कैसे?
राजनीति में कुत्तों की कतार हैं। अच्छी चलती रहे। तब तक तो बहार हैं। आडवाणी बनते ही सभी खिचकते जो कभी हुआ करते थेअति प्रिय मित्र यार हैं। मतलब राजनीति में ना कोई स्थाई मित्र ना कोई शत्रु। सभीआप मतलबीयों कि भरमार हैं।जय हिंद
दुनियां के सभी देश युक्रेन रूस युद्ध में फसेंअपने नागरिकों को सुरक्षितअपने वतन लौटने कि फ्री हवाई यात्रा कि सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए तत्पर हैं।लेकिनभारत देश विमान रहित होकर यह सुविधा उपलब्ध कराने मेंअसफल हो गया हैं।
योगी,खट्टर दुसरे राज्यों में चुनाव में बीजेपी का प्रचार करने क्यू जाते हैं। इसलिए किसानआंदोलन में किसान जाते हैं। ये सिख है। इनकेआगे तो अंग्रेजऔर मुग़ल तालिबान नहीं ठहरे तुम गद्दार तो किस खेत की मूली। तुम सिर्फ देश को खोखला, भ्रष्टाचार व गद्दारी कर सकते हो। संघर्ष नहीं कर सकते । लेकिन सब का हिसाब होगा ।आज सत्ता तुम्हारे हाथ में है। आप जो कहते हैं।वही सही है।थौड़ा इंतजार करो। यह वक्तभी जरूर बदलेगा।
तमाम डाकख़ाने प्रेम से चलते रहे। और हमारी कचहरियां नफ़रत से...! ✅ हैरत नहीं है कि डाकख़ाने कम हो गए और कचहरियां मे भीड़ बढ़ती चली गईं। ऐसा नही लगता हैं कि प्रेम ढुब रहा नफरत जीत रही? लेखक देवाराम बिश्नोई
राजनैतिक में यह एक बहुत बड़ी खुबी हैं। कि उसमें कोई चरित्र नहीं होता हैं। नैतिकता का कोई स्थान नहीं होता हैं। मदमस्त हाथी की तरह मनमर्ज़ी से जीने की खुली छुट होती हैं। आमआदमी से खास बनने की यही लालचा हमारे लोकतंत्र को एक दिनअवश्य ढुबो देगीं।