राजेश "बनारसी बाबू"
Literary Brigadier
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मैं क्रिएटिव व्यक्तित्व का इन्सान हूं

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अगर प्रकृति को सुरक्षित बचाना है तो हर व्यक्ति को वृक्ष लगाना है आओ विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस मनाए वृक्ष लगाए रोग मिटाए घर घर में खुशहाली लाएं

आज तारीख देख मेरी आखें फिर से नम हो गईं है 27 जुलाई की शाम आज फिर से गमहीन हो गई है। कलाम जी की पुण्य तिथि पर आज चर्चा ए नाम हो गई हे मिसाइल मैंन तेरी याद में आज यह शाम ए कलाम हो गई आपकी पुण्यतिथि पर आपको नमन

उस दिन आसमां भी रोया था जब फौजी तिंरगे से लिपटा सोया था कारगिल विजय दिवस के दिन हमनें खुशी से जय हिंद जय भारत बोला था पाकिस्तान पर विजय के लिए जब वो अपना सबकुछ छोड़ा था कारगिल विजय दिवस के दिन जब एक सुहागन ने अपना चूड़ी तोड़ा था कारगिल विजय दिवस की शुभकामनाएं

मां आप वट रूपी वृक्ष है तो पिता वट रूपी वृक्ष का छाया है मां पिता आपके चरणों में देखो सारा सृष्टि समाया है केवल आपकी ममता सच्ची है माता पिता के डाट में छुपा स्नेह अब सच में समझ में आया है माता पिता ही होते है भगवान स्वयं गणपति बप्पा ने हमे बताया है आओ माता पिता दिवस मनाए कुछ तो संतान होने के फर्ज निभाए Happy parents day

अंतराष्ट्रीय योगा दिवस आया है स्वस्थ रहने का संदेश लाया है योग करोगे निरोग रहोगे जीवन भर हकीम डॉक्टर से दूर रहोगे योगा करना आदत में लाना है रोग व्याधि को दूर भगाना है।

मां मेरी गुरूर तो पिता मेरा अभिमान है मां मेरी उम्मीद है तो पिता से सारा जहां है मां अगर हैं जमीन तो पिता पूरा आसमां है मां मेरी जान हैं तो पिता से मेरी पहचान है मां मेरी दिल में बसती तो पिता एक एहसास है मां ना हो तो जिंदगी वीरान है पिता अगर साथ ना हो तो सफर सुनसान है पिता अगर साथ हो तो दुकान के खिलौने अपने भी पिता ना हो तो भीड़ में भी हम अकेले है पिता है तो सारे ख्वाहिश पूरे होते अपने ही Happy

एक दिन ऐसा भी आएगा जब मनुष्य अपने बुरे कर्मो से स्वयं ही मिट्टी में मिल जाएगा हरे वृक्षों को काट काट कर धरती मरुस्थल सा बन जायेगा चारो ओर मौत का नंगा तांडव होगा हर ओर सुखा सा पड़ जायेगा आओ हम वृक्ष लगाए आओ हम विश्व मरुस्थलीकरण और सूखा निवारण दिवस मनाए भूमि क्षरण और अपरदन को रोकने का संकल्प उठाए

वक्त बेवक्त सा हो गया है सारा जहां अब सो सा गया है यहां अपने हो जाते पल में पराए चेहरे के पीछे है चेहरा छुपाए मनुष्य के खाल में भेड़िया बन आए दरिंदगी की सारी हदें तोड़ आए मासूम बच्ची की जिस्म पर है दांत गड़ाए हे मनुष्य तुझे बच्ची की दर्द ना सुनाए तू भी तो किसी का बाप बेटा भाई कहलाए लेकिन पुरुष तुझे कभी शर्म ना आए

चोट देकर दर्द ए दिल का हाल पूछते है सीने में खंजर कर जख्म ए हजार करते है खुद गुनाह कर हमे गुनहगार कहते है तुझे तेरी खुशी मुबारक हो दोस्त ये उदासी भरी शाम हम अपने नाम करते है वो बातो की लंबी राते और यादें हम अपने नाम करते है


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