Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

Vinod Kumar Mishra

Tragedy

5.0  

Vinod Kumar Mishra

Tragedy

अन्नदाता

अन्नदाता

2 mins
14.8K


नींव के ईंट के महत्व को कोई समझने की

चेष्टा भी नहीं करना चाहता,

दर्पण में प्रतिबिंब दिखता है

तो केवल सुंदर इमारतों का।


ख़त्म कर लेता है वो अपनी ज़िंदगी ये सोचकर

कि मुआवज़े से घर का कुछ तो भला हो जायेगा

और हम चंद पैसे देकर कहते हैं कि

अभी तो और भी किसान मरना बाकी हैं

तुम्हे तो बस इतना ही मिल पायेगा।


एक अन्नदाता की आत्महत्या पर

हम मुआवज़ा देने पहुंच जाते हैं।

पर न जाने क्यों उसकी ज़िंदगी सवारने

ये हाथ पहले उठ नहीं पाते हैं।


क्या इंतज़ार करते हैं हम उसकी मौत का,

जो न पहचानते हुए भी हमें ज़िंदगी देता है,

मज़ाक उड़ाते हैं हम उसकी लाचारी का

जो आंसुओं से सींच कर दो वक़्त की रोटी देता हैं।


भरे हैं गोदाम हमारे तो लगता है

उसकी ज़िंदगी भी खुशाल होगी,

पर किसी को क्या फ़िकर कि

इन गोदामों को भरने के लिए

कैसे उसने अपनी ज़िंदगी खाली की होगी !


ये कैसी विडंबना है कि किसी को

करोड़ों की संपत्ति भी कम लगती है,

वो कुछ पैसों में ही गुज़ारा कर लेता है।

किसी को छप्पन भोग में भी स्वाद नहीं आता,

और उसे वो गेहूं का अधपका दाना भी प्यारा लगता है।


बढ़ती है जब 4 रुपये महंगाई

तो जनता प्रदर्शन पर उतर आती है

एक वो भी ज़िन्दगी है जो सिर्फ

इन 4 रुपयों पर ही गुज़ारा करती है।


होती नहीं है जब बारिश, तो आंसुओं

से सींचता है वो अपने खेत

फिर भी जब होती न फसल,

तो बिक जाते है उसके खेत

खरीद लेता है कोई आमिर

एक महल बनाने को

जिस ज़मीन पर कल तक

चला करते थे हल

रखने उस महल कि नींव,

गिर जाती है उस पर रेत।


बुने थे उसने भी सपने कि एक छोटा सा

आशियाना बनाएगा उस ज़मीन पर

बन जाता है अब नौकर उन महलों का

और मिल जाता है उसे एक मजबूरी का

कोना अपनी ही ज़मीन पर ।


नहीं दिखती है अब उसके चेहरे पर मिटटी कि वो धूल

जिस ज़मीन पर कभी फलती थी गेहूं कि बालियां

अब क्यारियों में खिलते हैं सुंदर फूल।


जिस ज़मीन को अपन सर्वस्व समझा उस पर

अब उसका कोई अधिकार नहीं

जिस पर दिन भर मेहनत कर रातों को सोया करता

उन रातों का अब चौकीदार वहीं।


Rate this content
Log in