एक तवाइफ कि कहानी !!
एक तवाइफ कि कहानी !!
बच्चों को सुलाके निकली हूँ
उनके बेहतर सुबह के तलाश में !
कल मेरे बच्चों को पूरा खाना
मिले इस आस में !
मैं नीच हूँ इस समाज की निगाह में !
मैं आँखे बंद कर के
अपने कपड़े उतरवाती हूँ !
भूखे बच्चों के ख़ातिर
ख़ुद को रंडी बुलवाती हूँ !
हाँ साब मेरा भी मकान था !
हाँ छोटा ही सही मेरे ज़मीन
का वही आसमान था !
ये मजबूरियों ने ही
कपड़े उतरवाया था !
रोज़ रात ग़ेर मर्द के साथ
हम बिस्तर होने को मजबूर कराया था !
मैं हर रात वही खड़ी होजाती हूँ !
भूखे बच्चों के ख़ातिर
ख़ुद को रंडी बुलवाती हूँ !
एक एक कर के नोच खाते हैं सब !
कपड़े उतार के बारी बारी आते हैं सब !
पहला हुकुमरान हैं !
दूसरा निगहबान हैं !
तीसरा मेरे पैसे छीन कर
मेरे बच्चों के हक़ की रोटी
मारता हैवान हैं !
नम्म आँखो के साथ वो अपनी
ईज़्ज़त लुटवाती हैं !
हाँ वो अपने भूखें बच्चों के ख़ातिर
ख़ुद को रंडी बुलवाती हैं !
ये समाज उसके मजबूरी का
फ़ायदा उठाती हैं !
और उसे नीच बुलाती है !