बच्चे मन के सच्चे
बच्चे मन के सच्चे
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बच्चे मन के है सच्चे
है थोड़े अक्ल के कच्चे
पर है तो बच्चे
अच्छे बुरे का कोई ज्ञान नहीं
जो जैसे दिखे वैसा ही समझ लेते
किसी को कुछ नही कहते है
बच्चों को समझने के लिए
बच्चा बन जाये
तब ही तो आप
बच्चों को समझ पाये
बच्चों को कुछ
नहीं चाहिये
बच्चों को तो
बस प्यार चाहिये
बच्चे सब समझते है
कुछ कहते नही
उनकी चुप्पी को
कभी कमज़ोरी
मत समझना
जब हो जाते है एक
उनके इरादे
हमेशा रहते नेक
ईंट से ईंट बजा देते है
अपने मन की कर जाते है
ज़िद के बहुत पक्के होते है
बच्चे तो आखिर बच्चे होते है
जो मन के सच्चे होते है