ये आग कब बुझेगी
ये आग कब बुझेगी
एक आग थी वो जो बेरहमी से
उस बच्ची को जला गई
पल भर में उसकी जिंदगी
मौत के आगोश में समा गई
ये आग कब बुझेगी
एक आग वो थी जो सरहद पार से
बारूद बन के आ गई
एक माँ के लाल को कभी,
कभी सुहाग किसी का खा गई
ये आग कब बुझेगी
एक आग वो भी थी जो चुपके से
भीतर आ गई
सोते हुए ग़रीब मजदूरों की
जिंदगी चुरा गई
ये आग कब बुझेगी
एक और आग का किस्सा सुनो
जो भीड़ मिल के लगा गई
कभी बस जली कभी घर जला
नफरत को जो बढ़ा गई
ये आग कब बुझेगी
ये आग कैसी आग है क्या
माचिस इसे जला रही
ये आग कैसी आग है जो
आत्मा सुलगा रही
ना माचिस ना लकड़ी ना
बारूद की उपज है
ये आग तो संवेदनहीन मानव
की नफरत का बीज है
ये आग कब बुझेगी,
ये आग कब बुझेगी
ये आग तब बुझेगी
जब संवेदना का जल बहे
ये आग तब बुझेगी
जब नफ़रत दिलों में ना रहे
ये आग तब बुझेगी
ये आग तब बुझेगी