अंतिम निरीक्षण
अंतिम निरीक्षण
एक सैनिक अपने कर्मफल के लिये, स्वर्ग के प्रवेश द्वार पर खड़ा था
मरणोपरांत अंतिम निरीक्षण के लिये, भगवान से मिलने को अडा था।
भगवान बोले, सैनिक आगे आओ, मेरे कुछ सवालों के जवाब बताओ,
अहिंसा का मार्ग अपनाया, क्या मेरे प्रति सच्चे रहे, मुझको समझाओ।
सैनिक कंधे सीधा करके बोला, प्रभु, मेरे जैसे लोग ये नहीं कर सकते,
क्योंकि जो लोग बंदूक लेकर चलते हैं, वो संत बनकर नहीं जी सकते ।
मैंने कई छुट्टी के दिन भी काम किया, बहुत बार कठोर बर्ताव किया,
इस दुनिया में जीना बेहद मुश्किल है, मैं कभी कभी हिंसक भी हुआ।
पर मैंने कभी भी रिश्वत नहीं ली, मैंने सिर्फ मेरे हक का पैसा लिया,
मुझ पर जब कर्ज बहुत बढ़ गया, मैंने ज्यादा से ज्यादा काम किया।
हालांकि कई बार मैं बहुत डरा, लेकिन मदद के लिये कभी नहीं रोया,
और प्रभु मुझे माफ कर देना, कभी २ कायरों जैसे आँखों को भिगोया।
आम लोगों के साथ स्वर्ग की आशा, नहीं करनी चाहिये मैं जानता हूँ,
अपने डर को शांत करने के सिवा, ये मुझे नहीं पहचानते, मानता हूँ।
यदि स्वर्ग में मेरे लिये जगह है, उसे भव्य होने की जरूरत नहीं है,
कभी ज्यादा रहा ना उम्मीद की, मैं समझ सकता हूँ, अगर नहीं है।
उस जगह पर आज चुप्पी छाई थी, जहाँ पर अक्सर संत घूमते थे,
भगवान के फैसले के इन्तजार में, सैनिक संग सभी शान्त खड़े थे।
सैनिक तुमने अपना धर्म, पूरी निष्ठा से निभाया, अन्दर आ जाओ,
नर्क में आपका वक़्त पूरा हुआ, ‘योगी’ स्वर्ग मैं अपनी जगह पाओ ।