बिटिया मेरी
बिटिया मेरी
वो आकर मुझे ख्वाबों से जगाने लगी है
मासूम -सी निश्छल बड़ी प्यारी हँसी है
वो मुझ -में मुस्कुराने लगी है
नन्ही -कली सी चंचल परी
न जाने क्यों मुझे अपने पास बुलाने लगी है !
सफ़ेद और काले रंग की “फ्रॉक” में
बिटिया मेरी
चलती है कुछ ठुमक के आगे को
पीछे मुड़कर मुझे देखने का हर पल प्रयत्न है
उसकी आँखों की चमक बड़ी मधुर है
कि वो मुझ में ही समाने लगी है !
“बिटिया गिर जाओगी “ और भाग कर
बाँहों में भर लिया मैंने उसको
जी भर कर चूमा उसके गालों को
लेकिन वो ना-समझ मुझसे खुद को
छुड़ाने में लगी है
नन्ही -सी बाइयाँ उसकी, वो मुझे
सताने लगी है
नन्हे -नन्हे पैरों से लो वो फिर चलने की
कोशिश में लगी है !
“माँ ..” वो पहला शब्द पुलकित कर गया
मुझको
“जी बेटा”
कुछ कहना नहीं था उसको
वो बस अपने इस एहसास पर इठलाने लगी है
माँ आ जाती है पास मेरे जब कहती हूँ ‘माँ ’
वो मुझे देखकर खिल -खिलाने लगी है
मेरी बिटिया अब मुझे “माँ” बुलाने लगी है
उसकी आँखों में सपने हैं
हसरतें आसमान को छू लेने की
होठों पर बातें कई हैं
उसको समझने वाली उसकी दोस्त ‘मैं’
साड़ी का आंचल पकड़कर समझाती है
मुझे कुछ वो
उसकी ऑंखें मुझसे कहती हैं
“माँ ,समझ गयी ना तुम ?”
और मैं झुक कर उसके बराबर की हो जाती हूँ
अपनी ‘परी ’ के साथ मैं भी बच्ची बन जाती हूँ
शुरू हो गयी हैं उसकी अठखेलियां
वो मेरी हर बात अब समझने लगी है
बड़ी -बड़ी सी उसकी ऑंखें विस्मित
कर देती हैं मुझको
वो स्कूल अब जाने लगी है
“ऐ ” नहीं बनता जब उससे ,
भोली -सी शकल बना लेती है
यूँ तो समझदार है मेरी बिटिया ..आँखों में
आँसू भर कर मुझे मनाती है
“बेटा...ऐसे कैसे आएगा समझ में ?
ज़रा गुस्से से डांटा मैंने उसको था
टप -टप -टप आँसू बिखर गए ..
नन्ही -सी राजकुमारी मेरी बिटिया
मैंने गोद में लिया परी को
उसको प्यार -से मनाया फिर ...
उसको बिस्तर में सुला दिया
पलकों ने उसको सपनों से मिला दिया
जो उठने की कोशिश मैंने की ..
उन मासूम हाथों ने मेरा आँचल पकड़ा था
न दूर जा सकी उससे मैं,बहुत कोशिश की ..
मेरे हाथ सहलाते रहे उस फ़रिश्ते को
जिसने मुझे खुल कर रोना सिखा दिया
तेरे हर एहसास से वाकिफ हूँ मैं बिटिया
नहीं चाहत मेरी फिर भी की तू बड़ी हो जाये
तुझे पता नहीं तेरा ‘अस्तित्व ’ सबसे प्यारा है
तूने मुझ में बचपन को जगा दिया
“अब मैं बड़ी हो गयी हूँ माँ ,है ना?"
3 साल की परी का ये सवाल अजीब था
उसके शू -लैस बांध रही थी मैं
मेरी आँखों ने कुछ पल उसकी आँखों को देखा
और मैं हँस पड़ी
“माँ ,क्या हुआ माँ ?”
‘क्या जवाब दूँ उसको ....नन्हे नन्हे कदम उसके ,
हज़ारों प्रश्न पूछती उसकी चंचल ऑंखें ’
“आपको टॉम एंड जेरी देखना है ?” मैंने पूछा
“जी माँ ”
“फिर,अभी आप बड़े नहीं हो ”
“क्यों माँ ?”
“आप क्या मेरे जितने बड़े हो गए हो बेटा ?”
मैंने उसको अपने बराबर में खड़ा कर के कहा
“माँ ..मुझे गोदी में लो“ उसने अपने हाथ बढ़ा दिए
“अब तो हूँ ना मैं आपसे बड़ी -बड़ी बड़ी“
वो खिलखिला पड़ी .
“हाँ ..मेरी बच्ची“ उसको चूम लिया मैंने जी भर के
गुड़िया को बाँहों में लेकर उसके स्कूल तक
छोड़ आयी मैं
आज ना जाने क्यों उसको गोद से उतारने का
मन नहीं था
न जाने कितनी बातें की उसने मुझसे
‘ट्रीज ग्रीन क्यों हैं,स्काई का कलर ब्लू क्यों है ’
न जाने क्या क्या बताती रही मुझको
मेरी बिटिया ऊँगली पकड़कर चलाती रही मुझ को
इंतज़ार उसके लौट आने का है अब
वो मुझे दुनिया से वाकिफ कराएगी जब
“माँ ..माँ ..माँ ..” नन्ही चिया बोल पड़ी
“आज मैडम ने पोयम सिखाई “
“आज मुझे 1 2 3 सिखाया मैडम ने ”
“गुड़िया ..कुछ खा लो ..”कहकर
मैंने उसे फ्रूट्स दिए थे
“मम्मा..ये ऑरेंज कलर है ना ?”
ग्रैपस को वो ‘ऑरेंज ’ बता रही थी
उसकी इस नादानी पर मैं मुस्कुरा रही थी
गोल गोल ऑंखें कर के पूछ रही थी वो
“मम्मा ..फिर ये कौन सा कलर है ?”
“बेटा ..ये ग्रीन कलर है …”
मैंने ‘ग्रैपस' उसके मुँह में खिला दिए थे
“सो जाओ बेटा अब …”मैंने उस
नन्ही परी को प्यार से कहा था
वो चली भी गयी थी एक बार में ही सुनकर
उसके पीछे जाने का मन था
पर कुछ काम बाकी था
“मैं आती हूँ अभी बिटिया ..”
कहकर मैं रसोई में चली गयी
आकर उसको देखा तो हैरान थी
मैडम ने सब ग्रीन अलग कर दिया था
ग्रीन फ्रॉक ग्रीन हैरबैंड ग्रीन शूज ग्रीन क्लिप
उसको बाँहों में उठा लिया मैंने
मासूमियत से अपने गले लगा लिया मैंने
“क्या कर रहे हो बच्चा ..?”
“माँ ..ये सब ग्रीन कलर हैं ना ..?”
“जी बेटा ..”
उसकी लगन से खुश थी मैं
लेकिन अब उसको सुलाना था
बहुत चंचल थी मेरी परी
अब उसको आराम कराना था
“और मम्मा ..ऑरेंज …” बोल पड़ी वो
“मुम्मा ..मेरे पास ऑरेंज में कोई ड्रेस नहीं है ..”
खिलखिलाकर हँस पड़ी मैं
और वो मेरी आँखों में देख रही थी
“बेटा ..पहले सो जाओ …”
“पर माँ …”अब उसका प्यारा सा मुखड़ा
‘ज़िद्द ’ में तन गया था
“बेटा ..सोओगे फिर शाम को
परी देकर जाएगी आपको ऑरेंज ड्रेस ”
“सच ..माँ ..? “
वो ख़ुशी से खेल रही थी मेरे बालों से
और मैं उसे थपकी देकर सुला रही थी
न जाने ये सोच उसकी अपनी थी
कि बिखेर दिया था उसने सब कुछ
एक ‘कलर ’ के ना मिल जाने तक
या कि ये सब करना था उसको
मैडम के कहने पर
मेरी बच्ची एक कलर को समझने में
व्यस्त हो रही थी
अपनी मासूमियत कहीं ना कहीं
किताबों में खो रही थी
उसका पढ़ना अच्छा लगता है मुझको
लेकिन लग रहा था जैसे वो बहुत
जल्दी बड़ी हो रही थी
उसके बचपन से आगे बढ़ने का मेरा मन नहीं है
चंचल सी उन आँखों को झुठलाने का मन नहीं है
वो प्यारा सा बचपन मेरी गुड़िया का भुलाने का
मन नहीं है
फैंसी ड्रेस में मुझे उसको “परी ” बनाना था
और उसको ‘मदर टेरेसा ’ बनना था
ये बेटा तेरी आगे बढ़ने की ख़्वाहिश अच्छी है
लेकिन मेरा तेरे बालों में सफेदी
लगाने का मन नहीं है
तू बोल तो लेती है वो सब जो
‘मैडम ’ तुझे सिखाती हैं
लेकिन तेरी मासूमियत में अभी
उन शब्दों का प्रभाव नहीं है
तू कहती है हर साल ‘परी ‘ नहीं बनना मुझको
और मुझे तुझे ‘लक्ष्मी बाई ’ और
‘तांत्या टोपे ’ बनाने का मन नहीं है
बिटिया मेरी …मासूम सी रह जा सदा तू
मुझे तुझे ज़िन्दगी की कड़वाहट
का ‘स्वाद ’ चखाने का मन नहीं है
तेरा वो घंटो पेंसिल लेकर कॉपी किताबों से लड़ाई करना
मेरा तुझे देखते रहना
उस दूध के गिलास का हर बार ठंडा हो जाना
कुछ मस्ती तो कर ले तू
मुझे तुझको ‘इंटेलीजेंट ’ बनाने का मन नहीं है
“माँ …मैं बैडमिंटन खेलने जाऊँ अब ?”
हाँ तेरे इस सवाल से मुझको कोई डर नहीं है
वो आंगन मेरा तेरी सहेलियों का ‘प्लेग्राउंड ‘
बन जाता है
तेरी नन्ही उँगलियों से वो खेल खेलने का जतन
छोटी है तू बच्ची मेरी _ लेकिन ये कॉर्पोरेट
स्कूलों का चलन
तेरी उन कोशिशों को खिड़की से देखती
रहती हूँ मैं हर पल
और तेरा कभी कभी मेरी आँखों में देख
लेने का वो चलन
‘मम्मा देख रही हैं मुझे ’_ और फिर और
अच्छे से तेरा खेलना
छू जाता' है मुझको तेरा कोशिशों का वो
मुकम्मल सा सिलसिला
तय ही है तेरी उम्र का बढ़ते जाना
खूबसूरत है तेरा बचपन
और बेहतरीन आगे की ज़िंदगानी होगी
बिटिया मेरी _
तू एक दिन किसी और कि राजकुमारी होगी
बिटिया तेरी विदाई होगी
और उस दिन तू परायी होगी
तू उस दिन भी समझदार होगी
लेकिन मेरे आँसू ना रुक सकेंगे
तुझे विदा करने का मन नहीं है
तू मेरी जान है तुझसे अलग होने का
मन नहीं है
इस संसार के रिवाज़ो को बदल देना
हो सके तो सदा मेरे आँचल में सिमट के रहना
बहुत मुश्किल होता है अपने साये से यूँ
जुड़ा हो जाना
न जाने क्यों समझ से परे होता है उस
वक्त ये ‘ज़माना ’
तू सदा मेरी ही रहना
‘ना ’ कह देना उन रिवाज़ों को
एक मासूम सा प्रश्न करना तब तू
“माँ …मैं क्यों नहीं रह सकती अब पास तुम्हारे ?
क्यों तोड़ने हैं अब ये बंधन सारे ?
ना जा सकूँ ..ऐसा कुछ तो करो ना माँ
अपनी बिटिया को बाँहों में भर लो ना माँ “
तुझे खुद से दूर भेजने का मन नहीं है
तुझे विदा कर ना सकूँगी मैं
कि ज़िन्दगी में तेरे बिन वो ‘ऑरेंज ’ कलर नहीं है
बिटिया मेरी
तू मेरी नन्ही सी परी है...